6 साल बाद भी नहीं खुला ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा भूमि लीजबैक में की गई धांधली की जांच रिपोर्ट का पिटारा
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रविन्द्र बंसल प्रभारी यूपी, यूके / हिंद फोकस न्यूज़
6 साल बाद भी नहीं खुला ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा भूमि लीजबैक में की गई धांधली की जांच रिपोर्ट का पिटारा
यीडा के तत्कालीन सीईओ द्वारा सबमिट जांच रिपोर्ट पर शासन भी लगा चुका है मंजूरी की मोहर
जांच रिपोर्ट ग्रेटर नोएडा के तत्कालीन कालीन अधिकारियों/ कर्मचारियों और लीजबैक का अनुचित लाभ लेने वाले गैर पुश्तैनी काश्तकारों के भ्रष्टाचारी गठजोड़ की तरफ कर रही है इशारा
-कर्मवीर नागर प्रमुख
गौतमबुद्धनगर। जहां एक तरफ ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण पुश्तैनी काश्तकारों की आबादी व्यवस्थापन और लीजबैक की समस्याओं का निस्तारण भूमि अधिग्रहण के 17 साल बाद भी नहीं कर पाया है। वहीं दूसरी तरफ ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के तत्कालीन अधिकारियों की मिलीभगत से ऐसे गैरपुश्तैनी काश्तकारों को लीजबैक के जरिए बड़ी मात्रा में अरबों रुपए मूल्य की भूमि का घोटाला यमुना प्राधिकरण के तत्कालीन सीईओ अरुणवीर सिंह की अध्यक्षता में की गई जांच से खुलासा हुआ है जो अधिकांशतः गौतम बुद्ध नगर के मूल निवासी नहीं बल्कि दिल्ली, मुंबई, नागपुर आदि देश के दूर दराज हिस्से में रहने वाले लोग हैं। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के तत्कालीन अधिकारियों द्वारा की गई इन धांधलियों की शिकायत वर्ष 2017 से 19 के बीच लगभग 7-8 वर्ष पहले की गई थी। मामले की गंभीरता को देखते हुए शासन प्रशासन के उच्च अधिकारियों द्वारा यमुना प्राधिकरण के तत्कालीन सीईओ अरुणवीर सिंह की अध्यक्षता में लीजबैक प्रकरणों में की गई अनियमिताओं की जांच हेतु तत्समय एक कमेटी का गठन किया गया था।
पुख्ता जानकारी के अनुसार यमुना औद्योगिक विकास प्राधिकरण के तत्कालीन सीईओ अरुणवीर सिंह जी की अध्यक्षता में लीजबैक प्रकरणों में की गई अनियमितताओं की जांच रिपोर्ट दिनांक-10-11-2017, दिनांक- 30-5-2018, और दिनांक- 26-09-2018 को तीन आख्याओं के माध्यम से दी गई थी। इन आख्याओं में प्रस्तुत यह जांच रिपोर्ट पत्रांक- वाई ईन ए/अध्यक्ष/ 52/ 2018 दिनांक- 5/11/2018 के जरिए उत्तर प्रदेश शासन को स्वीकृति हेतु भेजी गई थी। लीजबैक धांधली में दिल्ली, मुंबई, नागपुर आदि शहरवासी जिन काश्तकारों के नाम उजागर हुए हैं जांच रिपोर्ट में उन के आवासीय पतों का भी स्पष्ट उल्लेख किया गया है। इतना ही नहीं जांच रिपोर्ट से यह भी खुलासा हुआ है कि बाहरी व्यक्तियों को गौतम बुद्ध नगर का मूल निवासी बनाने का कार्य विक्रय पत्रों का दाखिल खारिज करते समय षड्यंत्र रचकर राजस्व विभाग के कर्मचारियों द्वारा किया गया ताकि उन लोगों को पात्र बनाकर लीजबैक का लाभ दिया जा सके। जांच रिपोर्ट में हुए खुलासे के अनुसार लीजबैक करने में अनियमितता करने की गाड़ी का पहिया यहीं तक नहीं रुका बल्कि जांच रिपोर्ट में किए गए उल्लेख के अनुसार इन लोगों ने लीजबैक का अनुचित लाभ लेने के लिए गौतम बुद्ध नगर के पते पर वोटर आईडी कार्ड तक बनवाए गए थे।
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण क्षेत्र के बिसरख जलालपुर गांव की भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया धारा 4/17 की कार्यवाही दिनांक- 12-03-2008 को, धारा 6/17 की कार्यवाही दिनांक- 30-06- 2008 को और कब्जा हस्तांतरण दिनांक- 26-09-2009 को किया गया था लेकिन जांच कमेटी के अध्यक्ष श्री अरुणवीर सिंह जी की दिनांक -10-11-2017 की जांच आख्या में इस गंभीर अनियमितता का का भी उल्लेख किया गया है कि तहसील स्टाफ द्वारा लीजबैक का अनुचित लाभ लेने वाले गौतम बुद्ध नगर से बाहर के निवासी काश्तकारों के नाम ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया हेतु धारा 4/17 और 6/17 की विज्ञप्ति जारी करने के बाद दर्ज किये गए हैं जो जांच का बहुत ही गंभीर विषय है।
एक तरफ जहां ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा ऐसे गैर पुश्तैनी काश्तकारों को भी भूमि लीजबैक कर दी गई जिनके नाम खतौनी में अधिग्रहण प्रक्रिया के बाद दर्ज हुए थे वहीं दूसरी तरफ पुश्तैनी काश्तकारों को लीज बैक और आबादी भूखंड आबंटन के मामलों में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की बोर्ड बैठक की नियमावली का हवाला देकर टरका दिया जाता है। न्यू नोएडा घोषित क्षेत्र में भी ऐसे ही बाहरी लोग जमीन खरीदने के लिए सक्रिय हो गए हैं जो भ्रष्टाचार के जरिए अनुचित लाभ लेकर स्थानीय किसानों के हकों के साथ खिलवाड़ पर उतारू हैं। इसलिए वहां भी ऐसा ही गड़बड़ घोटाला होने से इनकार नहीं किया जा सकता।
जांच रिपोर्ट में लीज बैक में हुई भारी धांधली का यहां तक खुलासा हुआ है कि लीजबैक में अनियमितता बरतने के इन प्रकरणों में वर्ष 2009 में खतौनी में नाम दर्ज होने के बाद उक्त भूमि पर कोई आबादी निर्माण न होने के बावजूद भी बाहरी लोगों को वर्ष 2010 में भूमि बैकलीज कर दी गई। जांच रिपोर्ट में तो यहां तक भी खुलासा किया गया है कि कृषि कार्य के लिए खरीदी गई भूमि को बैकलीज करने के कई प्रकरणों में तो विक्रय पत्र में उक्त भूमि पर कोई पेड़, बोरिंग आदि के होने का भी उल्लेख नहीं है। जांच कमेटी के अध्यक्ष तत्कालीन सीईओ की दिनांक -10-11-2017 की जांच आख्या में स्पष्ट उल्लेख है कि तत्कालीन तहसीलदार संजय प्रसाद द्वारा स्थलीय निरीक्षण के फोटोग्राफ्स में भी एक प्रकरण के अलावा अन्य लोगों की भूमि पर कोई आबादी निर्मित नहीं पाई गई। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार जांच कमेटी के अध्यक्ष और यमुना प्राधिकरण के तत्कालीन सीईओ की दिनांक-10-11-2007 की जांच आख्या के पृष्ठ संख्या-7 के अंश ‘ख’ में तो यहां तक भी स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के तत्कालीन अधिकारियों/ कर्मचारियों द्वारा लीजबैक का अनुचित लाभ लेने वाले लोगों से मिलकर गलत आख्या प्रस्तुत की गई है। *जबकि उत्तर प्रदेश शासन द्वारा दिनांक- 24.04.2010 को जारी आदेश के तहत किसी भूमि पर आबादी निर्मित होने की परिस्थिति में, जन आक्रोश और सामान्य कानून व्यवस्था बिगड़ने की परिस्थिति में और भूमि का प्राधिकरण के लिए उपयुक्त न होने जैसी तीन परिस्थितियों में ही लीजबैक किया जाना अनुमन्य है। लेकिन जांच आख्या में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि बैकलीज के जिन प्रकरणों में अनियमितता बरती गई हैं वह इन तीनों शर्तों के दायरे में नहीं आती हैं बल्कि तत्कालीन अधिकारियों द्वारा षड्यंत्र के तहत बेश कीमती भूमि को लीज बैक करके गौतम बुद्ध नगर से बाहर के निवासियों को दे दिया गया जबकि वही ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण मूल निवासियों को नियमावली की दुहाई देते नहीं थकता।
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के तत्कालीन अधिकारियों द्वारा लीजबैक में की गई बड़े स्तर की धांधली की जांच रिपोर्ट पर शासन द्वारा लगभग साढ़े 6 वर्ष पूर्व निर्णय लेते हुए बैक लीज में अनियमितता पाए जाने वाले सभी प्रकरणों को निरस्त करने का फरमान जारी करते हुए उक्त भूमि को प्राधिकरण के पक्ष में वापस लेने की भी संतुति की गई थी। लेकिन सच्चाई तो यह है कि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा उक्त भूमि को वापस लेना तो दूर रहा यहां तक कि जांच रिपोर्ट पर शासन द्वारा जारी संतुति पत्र का ही कोई अता पता नहीं है जिसमें भूमि की लीजबैक करने में धांधली करने के इन प्रकरणों को उत्तर प्रदेश शासन में तत्कालीन प्रमुख सचिव रहे राजेश कुमार ने लीज बैक प्रकरणों में की गई अनियमितताओं को पूर्ण नियोजित तरीके से षड्यंत्र कर आपराधिक कृत्य मानते हुए संबंधित अधिकारियों/ कर्मचारियों के विरुद्ध आईपीसी और प्रिवेंशन ऑफ़ करप्शन एक्ट की सुसंगत धाराओं में एफआईआर दर्ज करने की कार्यवाही के जनवरी 2019 में आदेश भी दिए गए थे। इतना ही नहीं लीजबैक अनुमोदन के मानकों का लीजबैक समिति द्वारा सही से अनुपालन नहीं किये जाने की वजह से शासन द्वारा संतुति रिपोर्ट में लीजबैक समिति को भी दोषी माना गया है। लेकिन प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री जी की भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति के बावजूद इतने बड़े भ्रष्टाचारी घोटाले को भी डंप कर दिया गया है ?
इस जांच रिपोर्ट के डंप होने के बाद ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में कुछ भ्रष्टाचारियों के मंसूबे इतने बढ़ गए हैं कि ऐसे गड़बड़ घोटालों का आए दिन खुलासा होना तो अब आम बात सी हो गई है। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के विषय में तो अब आमधारणा यह बन गई है कि यहां भ्रष्टाचार के बल पर असंभव से असंभव कार्यों के संभव होने की गुंजाइश से कतई इंकार नहीं जा सकता। इसीलिए तो एक तरफ जहां किसान वर्ष 2008 में अर्जित भूमि की एवज में 6% और 8% के भूखंड आबंटन की बाट जोह रहे हैं वहीं दूसरी तरफ चोरी छुपे गैर पुश्तैनी काश्तकारों को भूखंड आबंटित किए जाने की भी खबरें मिल रही हैं। इतना ही नहीं कम रेट की भूमि वाले गांवों के प्लॉट शिफ्ट करके रोजा याकूबपुर और पतवाडी जैसे ऊंची दरों के गांवों की भूमि में शिफ्ट किये जा रहे हैं। लेकिन इस भ्रष्टाचारी लूट का लाभ वही लोग खुले आम लेते नजर आ रहे हैं जिनकी जेब भारी है। ईमानदारी में आस्था रखने वाला आम किसान तो आज भी खून के आंसू रो रहा है।
इसलिए भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति पर काम करने वाली उत्तर प्रदेश सरकार को भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए और सांठ-गांठ के बल पर लीज बैक का अनुचित लाभ लेने वाले उन गैर पुश्तैनी काश्तकारों और अनियमितता करने वाले उन अधिकारियों के विरुद्ध सख्त कार्यवाही करनी चाहिए जिनका खुलासा जांच रिपोर्ट में किया गया है और जिस बाबत शासन द्वारा जारी औद्योगिक विकास अनुभाग-3, लखनऊ: दिनांक-10 जनवरी 2019 के पत्र संख्या- 3363/77-3-18-200 एम/18 में भी संतुति की गई है। अगर यमुना प्राधिकरण के तत्कालीन सीईओ अरुण वीर सिंह द्वारा लीज बैक प्रकरणों में अनियमितता के विरुद्ध की गई जांच पर कार्यवाही होती है तो यह रिपोर्ट भ्रष्टाचार रोकने के लिए मिल का पत्थर साबित हो सकती है। अगर प्राधिकरणों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना है तो लगभग 5- 6 वर्ष बीत जाने के बाद भी जांच रिपोर्ट पर अब तक कार्यवाही न किए जाने के पीछे के कारणों की भी जांच होनी चाहिए। क्योंकि जहां ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अधिकारी मूल काश्तकारों की जेनुइन आबादियों को डिमोलिश करके अखबारों में करोड़ों अरबों रुपए की भूमि खाली कराने की खबरें प्रकाशित कराकर सरकार और शासन की नजरों में वाहवाही लूट रहे हैं वहीं दूसरी तरफ खरबों रुपए के ऐसे घोटालों को दबाए बैठे हैं। मेरा तो यह मानना है कि प्राधिकरणों पर आए दिन किसान हित में आवाज उठाने वाले किसान संगठनों को ऐसे भ्रष्टाचारों की पोल खोलने के लिए आगे आना चाहिए ताकि गैर वाजिब लोग भ्रष्टाचारी गठ जोड़ के जरिए अनुचित लाभ लेकर भोले भाले मूल किसानों के हकों पर डाका डालना बंद कर सकें।
