July 4, 2025

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जहां भूखंड आवंटन के लिए वर्षों से बाट जोह रहे किसान रो रहे हैं खून के आंसू वहीं ग्रेनो में भ्रष्टाचार के जरिए आवंटित हो रहे हैं आबादी भूखंड

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हिंद फोकस न्यूज़                                                                                                           

जहां भूखंड आवंटन के लिए वर्षों से बाट जोह रहे किसान रो रहे हैं खून के आंसू वहीं ग्रेनो में भ्रष्टाचार के जरिए आवंटित हो रहे हैं आबादी भूखंड

शांतिपूर्ण संघर्षों के बाद झूठे आश्वासनों पर ठगा महसूस कर रहे किसान और ग्रामीण अब भ्रष्टाचारियों से सीधी लड़ाई लड़ने के लिए मजबूर, आमका गांव प्रकरण जीवंत उदाहरण

सबका साथ सबका विकास की विचारधारा और जीरो टॉलरेंस नीति पर काम करने वाली सरकार के लिए ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में व्याप्त भ्रष्टाचार बना बड़ी चुनौती

औद्योगिक नगरीय क्षेत्र घोषित होने के बाद पंचायत पुनर्गठन से वंचित गांव तरस रहे हैं विकास और म्युनिसिपल सेवाओं के लिए

जनता जनार्दन के हित की बात करने वाली सरकार में औद्योगिक मंत्री नंद गोपाल नंदी को गांवों और किसानों की दुर्दशा जानने के लिए खुला आमंत्रण

-कर्मवीर नागर प्रमुख

गौतमबुधनगर । हालांकि नजर डालें तो कोई भी सरकारी महकमा भ्रष्टाचार से अछूता नजर नहीं आता लेकिन नोएडा, ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में व्याप्त भ्रष्टाचार पर तो माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा कई बार तलख टिप्पणी करने के बावजूद भी कोई सुधार नजर नहीं आता। जहां तक किसानों की समस्याओं के निस्तारण का विषय है ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण भले ही कुछ भी बहाना बनाए लेकिन किसानों की भूमि अर्जित करने के 17 वर्ष बाद भी आबादी भूखंड आबंटन और अन्य समस्याओं का निस्तारण न किये जाने में देरी का कारण भ्रष्टाचार के सिवा कुछ नजर नही आता। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के खुलेआम भ्रष्टाचार की देखा देखी तो नई पीढ़ी के संस्कारों को भी ठेस पहुंच रही है। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में जब भी कोई नया अधिकारी तैनात होता है तो किसानों और आम लोगों को उम्मीद जगती है कि शायद अब अच्छे दिन आने वाले हैं। लेकिन प्राधिकरण में प्रवाहित भ्रष्टाचारी धारा में गोता लगाने के बाद अधिकारियों की मानसिकता बदलना आम बात सी हो गई है। भले ही इस भ्रष्टाचारी धारा में गोता लगाने के लिए उनकी कोई बाध्यता हो या फिर निजी स्वार्थ।
जब नोएडा प्राधिकरण में 900 करोड रुपए का घोटाला जांच में उजागर हुआ था उस समय भ्रष्टाचार आमतौर पर टेंडर्स तक सीमित था और चर्चा का विषय बनता था लेकिन अब तो इन प्राधिकरणों में हजारों करोड़ रुपए के घोटाले होना आम बात हो गई है। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में तो भ्रष्टाचार की इतनी इंतहा हो गई है कि माननीय उच्चतम न्यायालय की बार-बार फटकार के बाद भी कोई सुधार नजर नहीं आता। इसीलिए तो टेंडर्स में गड़बड़ी के लिए फूल प्रूफ माने जाने वाली उच्च तकनीक की ई- टेंडरिंग प्रणाली में भी भ्रष्टाचार के बल पर लोएस्ट-1 बिडर को लोएस्ट- 2 और लोएस्ट-2 बिडर बनाने का खेला हो चुका है। विकास कार्यों की गुणवत्ता भ्रष्टाचार और कमीशन खोरी की भेंट चढ़ गई है,जल्दी खराब हो रहे निर्माण कार्यों की वजह से प्राधिकरण के राजस्व को क्षति पहुंच रही है, ब्लो रेट टेंडर परिपाटी से राजस्व बचत की सोच रखने वाले अधिकारियों को समझ नहीं आ रहा कि वर्किंग रेट न होने की वजह से विकास कार्यों की घटिया क्वालिटी से जहां निर्माण कार्यों में जल्दी टूट फूट होने से सरकारी राजस्व को क्षति पहुंच रही है वहीं प्राधिकरण की साख को बट्टा लग रहा है। लेकिन शायद भ्रष्टाचार ने दूरगामी योजनाओं के विषय में अधिकारियों की सोच को ही बदल दिया है। न जाने क्यों जन प्रतिनिधि भी इन मसलों को सरकार के समक्ष उठाते नजर नहीं आते। जहां किसानों को भू-अर्जन के 17 साल बाद भी आबादी भूखंड आबंटन और मुआवजा वृद्धि के लिए ठोकरें खानी पड़ रही हैं वहीं दूसरी तरफ दलालों के जरिए मोटी रिश्वत लेकर बैक डोर से भूखंड आबंटन का गोरख धंधा अनवरत जारी है, जहां शिफ्टिंग पॉलिसी लागू न होने के नाम पर किसानों की भूमि शिफ्ट नहीं की जा रही वहीं दूसरी तरफ प्लेसमेंट के जरिए ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में मैनेजर के पद पर तैनात घोड़ी बछेड़ा निवासी एक अधिकारी पर अपने परिवार के पांच भूखंड घोड़ी बछेड़ा से उठाकर पतवाडी में शिफ्ट कराने की खुलेआम तोहमत लग रही है, जहां एक तरफ सचमुच में बस रही अवैध कालोनियों की तरफ स्वार्थ सिद्धि के बाद भ्रष्ट अधिकारी आंख उठाकर भी देखना मुनासिब नहीं समझते, वहीं दूसरी तरफ स्वार्थ सिद्ध न होने पर नोटिफाईड क्षेत्र के बहाने किसानों के घरों पर बुलडोजर चलाया जा रहा है। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के भ्रष्टाचार के विषय में क्या-क्या बखान किया जाए यहां सरकारी निर्देशों के बावजूद भी किसानों को भूमि बैकलीज के लिए सैकड़ो चक्कर कटवाकर रिश्वत देने के लिए मजबूर किया जा रहा है। जिन माननीय न्यायालयों के आदेशों का पूरे देश में सम्मान होता है वहीं किसान हित में दिए गए माननीय न्यायालयों के निर्णयों को भी प्राधिकरण अपने स्वार्थी चश्मे से पढ़ते नजर आता है। इस तरह देखा जाए तो प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री की भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति का अगर प्रदेश में सबसे ज्यादा कहीं मखौल उड़ाया जा रहा है तो ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण का नाम लेना अतिशयोक्ति नहीं होगा।
ग्रेटर नोएडा में व्याप्त भ्रष्टाचारों का आरोप, जनता से सीधे रूबरू होने के कारण, प्रथम दृष्टया भले ही निचले स्तर के अधिकारियों और कर्मचारियों पर लगता हो लेकिन इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता कि इन गड़बड़ घोटालों की अप्रूवल देने में अनियमितता करने वाले वह उच्च अधिकारी इन भ्रष्टाचारों से बेदाग हैं जिनकी अप्रूवल से नियमावली को ताक पर रखकर भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के बल पर बैक डोर से “आउट ऑफ़ द वे” काम हो रहे हैं। ऐसा नहीं कि सभी अधिकारी और कर्मचारी भ्रष्ट होते हैं लेकिन सच्चाई तो यह है कि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के सभी लोक सेवक आम जनता के दिल और दिमाग में भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुके हैं। प्राधिकरण की अनदेखी की वजह से पंचायत पुनर्गठन से वंचित और औद्योगिक नगरीय क्षेत्र घोषित गांव स्लम बस्ती में तब्दील होते नजर आ रहे हैं। इसलिए सबका साथ सबका विकास के नारे पर काम करने वाली उत्तर प्रदेश सरकार के औद्योगिक मंत्री माननीय नंद गोपाल नंदी को गांवों के लोगों का खुला आमंत्रण है कि गांवों में आकर उन ग्रामीणों और किसानों की समस्याओं और विकास का जायजा स्वयं लेंगे तो धरातल की सच्चाई सामने आ जाएगी।
इसमें भी कोई दो राय नहीं कि भ्रष्टाचारों पर अंकुश की आखिरी उम्मीद जनप्रतिनिधि, मंत्री और सरकार होते हैं लेकिन ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में आम जनता को इन दरवाजों पर भी अभी तक झूठे आश्वासनों से निराश होना पड़ता रहा है। इसीलिए तो तमाम शिकायतों के बाद भी ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण निरंकुश होकर भ्रष्टाचार करने से बाज नहीं आ रहा है। आमतौर पर देखा गया है कि जब अत्याचारियों, आततायियों और भ्रष्टाचारियों से आजिज आ चुकी जनता की शिकायत के सब विकल्प और दरवाजे बंद हो जाते हैं तब जनता जनार्दन के लिए सड़क पर उतरकर क्रांतिकारी आंदोलन करना ही आखिरी विकल्प होता है। हालांकि पिछले कुछ कटु अनुभवों के आधार पर यह कहना भी गलत नहीं होगा कि यहां तो किसानों और आम जनता के आंदोलन का नेतृत्व करने वालों से भी अब जनता का भरोसा उठता नजर आ रहा है। जब भ्रष्टाचार और अत्याचार के अंतिम उपचार से भी आम जनता का विश्वास डगमगा जाए तो वहां अत्याचार और भ्रष्टाचार पर लगाम और अंकुश लगाने के लिए न्यायालय की शरण में जाने के लिए वकीलों की महंगी फीस और लंबी कानूनी प्रक्रिया जनता को सीधी लड़ाई और क्रांतिकारी कदम उठाने के लिए मजबूर कर देती है भले ही बाद का नतीजा कुछ भी हो। हाल ही में आमका गांव में आबादी तोड़ने पर हुआ जोरदार विरोध इसका साक्षात उदाहरण है। अगर ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों ने अपनी भ्रष्टाचारी मंसूबों को विराम नहीं दिया तो आने वाले समय में स्थिति और भयावह हो सकती है। आम का गांव के प्रकरण के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के उत्पीड़न, अत्याचार और भ्रष्टाचार से आजिज आ चुकी आम जनता ने अब प्राधिकरण के दरवाजे पर गर्मी, सर्दी और बरसात में भूखे प्यासे लेट कर आंदोलन करने की राह छोड़ कर सड़कों पर उतरकर दो दो हाथ करने की ठान ली है। इसलिए प्राधिकरण को अपनी कार्य प्रणाली में एकरूपता और पारदर्शिता अपनानी होगी, भ्रष्टाचार के बल पर नियमावली को ताक पर रखकर बैक डोर से काम करना बंद करना होगा और भ्रष्टाचार के कारण किसानों के विरुद्ध दोहरी नीति अपनानी बंद करनी होगी। भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों को रामायण के रचयिता परम पूज्य बाल्मीकि जी की उस कहानी से जरूर सबक लेना चाहिए जो आम जनता से लूटपाट और अत्याचार करके अपने घर वालों का पेट भरते थे और जब पाप में भागीदारी के लिए बात आई तो अत्याचार की कमाई खाने वाले परिवार ने साफ इनकार कर दिया था। ठीक उसी तरह जिस दिन किसी भ्रष्टाचारी पर कोई शिकंजा कसा जायेगा तो उस दिन आम जनता का खून चूसने वाले भ्रष्टाचारियों द्वारा किए गए भ्रष्टाचार की मलाई चाटने वाले शरण दाता भी किनारा करते नजर आएंगे। भ्रष्टाचारों के आरोपों में जेलों में बंद और न्यायालयों में मुकदमा झेल रहे ऐसे तमाम अधिकारी भ्रष्टाचारियों के लिए इस बात की नसीहत हैं जो काली कमाई का बड़ा साम्राज्य खड़ा करने बाद समाज की नजरों में तिरस्कृत हैं और न्यायालयों के दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।
अब देखना है यह कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध किसानों और आम जनता के खुले विद्रोह पर उतारू होने के बाद ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के उन अधिकारियों पर कितना असर होता है जो भ्रष्टाचारी मानसिकता के कारण किसानों का उत्पीड़न करने पर उतारू हैं। क्योंकि आमका गांव की घटना के बाद गौतम बुद्ध नगर के किसानों में एक नई जागृति का संचार हुआ है और यही कारण है कि हरियाणा के अनंगपुर गांव में की जा रही आबादियों की तोड़फोड़ के विरोध में अनंगपुर वासियों को समर्थन देने के लिए गौतम बुद्ध नगर से भी लोगों के जत्थे पहुंच रहे हैं।

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